वैसे बुरी नहीं है गाली। इसका अपना ही संगीत है अपनी ताल। यह तो सुनने वाले पर है की वह कितने सप्तक गह सकता है, झेल लेता है समझ सकता है। पहले बात गाली के संगीत की। गा - ली यानी जिसे गाया जा सकता हो और उसमे संगीत , धुन न हो भला कैसे संभव है। तो गाली और संगीत में वही है जो ताल और लात में। ताल बिन संगीत कैसा और लात बिना गाली का मजा आ ही नहीं सकता। ताल में बस शब्द बदलिए और देखिए चमत्कार लात हाजिर। तो शुरू रहिये ताल और लात के सुखद समायोजन में। भगवान आप का भला करेगा। जीवन को ताल दे न दे लात जरूर देगा।
Wednesday 27 February, 2008
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