Monday 25 February, 2008

बदलो हथियार

तो जरूरी चीज हैं ताकत। लड़ सकने की ichachha का स्केल। सवाल यह हैं कि हमारी ladai क्या हैं और उसके औजार क्या होंगे । उसके निशाने पर कौन हैं। न न न ..... यह नहीं कह सकते हैं कि हम नहीं लड़ते। नहीं लड़ते तो यह गाली गलौज क्यों, यह गुस्सा क्यों, यह भड़ास क्यों। तो हमारे हथियार कुछ भी हो सकते हैं लेकिन गाली गलौज तो कतई नही। chuk जाने कि निशानी हैं गाली। अपने ही पर खीजने का क्रोध तत्त्व। चलो, गाली भी दिए देते हैं लेकिन क्या उससे गाली देने वाले का कुछ नहीं jata हैं। गाली देते हुए वह कहीं गहरे छिजता नहीं, खाली नहीं होता इस प्रक्रिया में एक बड़ी चीज जाती हैं और वह हैं उर्जा , गुस्से की taap। इसी ताप को तो बचाने की जरूरत है। आख़िर इसी ताप का तो संग्रह हमारी ताकत में ढलता है। एक मानसिक दृढ़ता , हमले सहने की क्षमता इसी ताप से पैदा होती है। तो हम गाली गलौज नहीं करेंगे। इसका कोई यह मतलब कदापि न लगाएं की हमें गाली नहीं आती, कि हम बचाव के रास्ते तलाश रहें हैं, कि हम लड़ना नहीं चाहते। हम लडेंगे, उन सभी सवालों से जिनके कश्मकश से आप हम यहाँ हैं, लेकिन हमारी धारणा पलायन की कतई नहीं है। हम व्यूह में रहकर उसके पेंच खोलने कि कला सीखना चाहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि सहने की ताकत। हम जानते हैं कि कुछ लोग इस पर टिप्पणी भी देंगे कि ................ में घुसे तुम्हारी फिलासफी तुमसे किसने कहा कि यहाँ आकर .......... मराओ । जान लीजिये - मैं बीहडी हूँ। मुरैना से लेकर औरैया तक मैंने चम्बल के बीहड़ को देखा है, उनमे घूमा हूँ, रातें बिताई है, उन्हें जिया है। इसलिए लड़ने कि कला मुझे आती है। यह बानी कि रवानी है। मगर वैसे नहीं जैसे कुछ लोग ब्लॉग पर लीद कर रहें हैं। इस तरह हगने का क्या फायदा। अपने ही आप पीठ ठोकना और इस अकड़ से घूमना कि हम किसी कि नहीं मानते। ........... तो घूमिये जनाब। मगर जरा ठहर जाइए, आप में से कई मेरे अग्रज हैं । वे भी जानते हैं कि बदलाव ऐसे नहीं आते मगर वह इसे स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। या फिर यह कहें कि कुंठित मन उनको ऐसा करने से रोकता है। सो कुंठा में तो गालियाँ ही निकलेंगी। अगर 'पाश' की कविता में कहें ---- ओ, अपनी प्रेमिकाओं को प्रेम पत्र लिखने वालों, अगर तुम्हारी कलम की नोंक बांझ है तो कृपया कागजों पर गर्भपात न करें ।